Friday, August 6, 2010

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मैं बूँद हूँ फिर भी प्यासी हूँ
सहमी सी एक उदासी हूँ
अनलिखी एक कविता हूँ मैं
बस इतनी बात ज़रा सी हूँ

मैं बिन सीपी का मोती हूँ
दीपक के बिना एक जोती हूँ
है पास नहीं कुछ भी मेरे
फिर भी मैं हर पल खोती हूँ
जिसको चंदा सहला न सके
 मैं ऐसी पूरनमासी  हूँ

जो सपने पूरे हों न कभी
मैं उन सपनों का घेरा हूँ
जो रात से ज्यादा काली हो
मैं उस सुबह का चेहरा हूँ
जो किसी भी लब पे सज न सके
मैं ऐसी एक दुआ सी हूँ

2 comments:

  1. वाह ,क्या ख़ूबसूरत कविता से आपने अपने ब्लॉग का आगाज़ किया है ;इस साहित्यिक दुनिया में आपका स्वागत है. " इतनी बात ज़रा सी" ? क्या क्या नहीं है इसमें .....प्यास .उदासी ,संवेदना और सपने ..............क्या बात है ! आपके सभी सपने पूरे हों ,आपका कलाम सबके लबों पे सजे ,इन्हीं दुआओं के साथ
    आपकी दोस्त .........'हया'

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  2. सबसे पहले तो आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है...आपने धमाके दार प्रवेश किया है अपनी इस लाजवाब कविता के साथ...आप को पढने की प्यास बढ़ गयी है....उम्मीद है आने वाले वक्त में भी आपकी कलम के खुशगवार कलाम से हम ऐसे ही रूबरू होते रहेंगे...

    नीरज

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